कर्म ही पूजा है: हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म के दृष्टिकोण

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कर्म ही पूजा है ( Work is Worship), यह एक प्रसिद्ध कथन है जो हिंदू धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन धर्मों के अनुसार, कर्म एक व्यक्ति के जीवन में आवश्यक होता है और उसके आचरण से उसकी आत्मा का उद्धार होता है।

कर्म ही पूजा है -हिंदू धर्म, सिख धर्म

हिंदू धर्म में, कर्म और उसके फल का महत्व बहुत उच्च माना जाता है। यहां यह सिद्धांत मान्य है कि एक व्यक्ति को अपने कर्मों के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिख धर्म में भी, कर्म का महत्व उच्चतम है। गुरु ग्रंथ साहिब में यह उल्लेख किया गया है कि कर्म के माध्यम से ही आत्मा का उद्धार होता है।

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म में भी कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां यह सिद्धांत मान्य है कि व्यक्ति के कर्मों के आधार पर ही वह अपने भविष्य को निर्माण करता है। धर्म के अनुसार, कर्म अच्छे होने चाहिए और नेकी के मार्ग पर चलना चाहिए।

इन धर्मों में कर्म का अर्थ न केवल शारीरिक क्रियाओं को समझने में है, बल्कि मन, वचन और कर्म सभी को सम्मिलित करता है। यहां यह सिद्धांत मान्य है कि अच्छे कर्मों के द्वारा ही व्यक्ति अपने आप को और समाज को सुखी बना सकता है।

समारोह, पूजा और त्योहार धर्म के एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन इन धर्मों के अनुसार, सच्ची पूजा कर्मों के माध्यम से होती है। इसलिए, इन धर्मों के अनुयायी अपने कर्मों को ईश्वर की पूजा के रूप में स्वीकार करते हैं।

समस्त धर्मों में कर्म ही पूजा ( Work is Worship) है और इसके माध्यम से ही व्यक्ति अपने आप को और समाज को उन्नत बना सकता है। इसलिए, सभी धर्मों के अनुयायी कर्म के महत्व को समझने और अपने जीवन में उसे अमल में लाने का प्रयास करना चाहिए।

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