गुरु नानक की कविता: गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने त रि का मंडल जनक मोती
गुरु नानक एक ऐसे महान कवि थे जिनकी ज़िन्दगी परम धार्मिकता, सम्पूर्णता और अनुभव के अद्वितीय दर्शनों से परिपूर्ण थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समय के आधार पर नई और अद्वितीय विचारधारा को प्रस्तुत किया। उनकी रचनाएँ उत्कृष्टता के प्रतीक हैं और उनकी असाधारण कला को प्रशंसा करना अच्छा है।
गुरु नानक की कविता “गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने त रि का मंडल जनक मोती” एक ऐसी रचना है जो उनके अद्वितीय विचारों को प्रकट करती है। इस कविता में उन्होंने विभिन्न प्रतीकों का उपयोग करके एक गहरा संदेश साझा किया है।
इस कविता में गुरु नानक ने गगन को थाली के रूप में वर्णित किया है, जिसमें रवि चंद्रमा और दीपक ज्योति के रूप में बने हैं। इसके अलावा, उन्होंने मोती के रूप में जनक का उल्लेख किया है। यह प्रतीकों का उपयोग उनकी कविता में एक गहरा और अर्थपूर्ण संदेश देने के लिए किया गया है।
गुरु नानक की कविता में व्यापकता और गहराई की भावना है। उन्होंने इस कविता में अपनी अद्वितीय कला का प्रदर्शन किया है और इसे एक मधुर संगीत के साथ प्रस्तुत किया है। इस कविता में गुरु नानक ने अपने विचारों को एक नया आयाम दिया है और उन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से अनुभव को एक नया रूप दिया है।
गगन में थाली के रूप में रवि चंद्रमा और दीपक ज्योति का बनना एक गहरा संदेश है। यह दिखाता है कि ईश्वर की प्रकृति में सभी वस्तुएं संयोजित हैं और एकजुट हैं। गुरु नानक इस कविता में इस विचार को व्यक्त करते हैं कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वरीय परिवार के हिस्से हैं और सभी को एक ही दिव्यता के साथ देखना चाहिए।
इस कविता में गुरु नानक ने मोती के रूप में जनक का उल्लेख किया है। यह प्रतीक उनके विचारों को दर्शाता है कि सभी मनुष्यों में दिव्यता होती है और हर व्यक्ति में ईश्वरीय गुणों की एक अद्वितीय संख्या होती है। गुरु नानक की इस कविता में यह संदेश दिया गया है कि हर व्यक्ति को अपने असली स्वरूप को पहचानना चाहिए और दूसरों के साथ साझा करना चाहिए।
गुरु नानक की कविता “गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने त रि का मंडल जनक मोती” उनकी अद्वितीय कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कविता में उन्होंने विभिन्न प्रतीकों का उपयोग करके एक गहरा संदेश साझा किया है और अपनी अद्वितीय कला को प्रशंसा की है। इस कविता के माध्यम से, उन्होंने अपने दर्शनों को लोगों तक पहुंचाने का एक नया तरीका विकसित किया है।
गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥ धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१॥ कैसी आरती होइ ॥ भव खंडना तेरी आरती ॥ अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥ रहाउ ॥ सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तुही ॥ सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२॥ सभ महि जोति जोति है सोइ ॥ तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥ गुर साखी जोति परगटु होइ ॥ जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥३॥ हरि चरण कवल मकरंद लोभित मनो अनदिनु मोहि आही पिआसा ॥ क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥४॥३॥ रागु गउड़ी पूरबी महला ४ ॥
आकाश रूपी थाल में सूर्य और चंद्र दीपक के समान हैं । मलय पर्वत से आती चंदन की सुगंध ही धूप है । वायु चंवर कर रही है । वनों की सम्पूर्ण वनस्पति तुम्हारी आरती के निमित्त फूल बनी हुई है । अनहद शब्द भेरी की तरह बज रहा है । हे भवखंडन ! तुम्हारी सीमित आरती किस तरह हो सकती है ?
गुरू नानक देव जगंनाथ गये । तहाँ आरती का समान हूआ । तब पंडतों ने कहा – हे साधू ! आपने भगवान की
आरती ना करी । अरु बैठा क्यों रहा ? तब गुरू नानक ने कहा कि – हम तो परमेसर के आगे ऐसी आरती करते हैं । जो सदैव काल ही हो रही है ।
In this particular line, Guru Nanak employs celestial imagery to convey the grandeur and majesty of the universe. The mention of the sun, moon, and stars symbolizes the cosmic order and the divine presence permeating every aspect of creation. The celestial bodies are depicted as radiant pearls adorning the vast expanse of the sky, emphasizing the divine beauty inherent in the cosmos.
The term “Janak moti,” translated as “the Creator, the Pearl,” underscores the idea that the ultimate reality, the divine force behind creation, is akin to a precious pearl—a symbol of purity, rarity, and intrinsic value. Guru Nanak uses metaphorical language to convey the ineffable nature of the divine, inviting the reader or listener to contemplate the profound mysteries of existence.
The reference to the “Ocean of Virtue” further enriches the verse with the metaphor of an infinite sea of righteousness. This image conveys the boundless and virtuous nature of the divine, suggesting that the entire cosmos is sustained by a vast ocean of divine goodness.
Guru Nanak’s poetry goes beyond the mere description of physical phenomena; it serves as a contemplative tool, guiding individuals on a spiritual journey. The “Japji Sahib” is revered for its eloquence, spiritual wisdom, and universal appeal. It encapsulates the essence of Sikh philosophy, emphasizing the oneness of the divine, the importance of righteous living, and the path to achieving spiritual enlightenment through meditation and devotion.
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