जीवन में हमेशा हमें अपने कर्मों के फल की चिंता रहती है। यह एक विचित्र बात है क्योंकि यह बयान, “कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर”(Karm kiye jaa phal ki ichcha mat kar)
अपने आप में वास्तविकता से दूर है। क्या हम इस बयान को संशोधित कर सकते हैं? इसकी व्याख्या करेंगे।
इस बयान में कहा गया है कि हमें अपने कर्मों के फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यह बात सत्य है कि हमें अपने कर्मों पर केंद्रित रहना चाहिए और उन्हें सही ढंग से करने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन क्या यह मतलब है कि हमें परिणामों की परवाह नहीं करनी चाहिए? यहां पर एक महत्वपूर्ण संदेश है।
Karm kiye jaa phal ki ichcha mat kar
जीवन में हम अक्सर परिणामों की चिंता करते हैं क्योंकि हमारी सामाजिक, आर्थिक और मानसिक आवश्यकताएं हैं जो हमें पूरी करनी होती हैं। हमें अपने कर्मों के फल की परवाह करनी चाहिए क्योंकि इससे हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
हालांकि, हमें यह भी समझना चाहिए कि परिणामों पर पूरी तरह से नियंत्रण नहीं हो सकता है। जीवन में हमें निरंतर बदलते परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और हमारे कर्मों के फल भी इन परिस्थितियों के आधार पर बदल सकते हैं।
इसलिए, हमें अपने कर्मों को सच्ची निष्कामता के साथ करना चाहिए और उन्हें सही ढंग से करने का प्रयास करना चाहिए। हमें अपने कर्मों के फल पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन हमें अपने कर्मों के माध्यम से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।
इस प्रकार, यह संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और परिणामों की परवाह नहीं करनी चाहिए। यदि हम यह संदेश समझते हैं और अपने जीवन में इसे अमल में लाते हैं, तो हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
Hower I think otherways:
In the journey of life, the wisdom encapsulated in the quote “कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर” (Perform your duties without attachment to the results) often confronts the inherent human tendency to worry about outcomes. However, a transformative perspective emerges when we shift our focus to “कर्म किये जा कर्मों का फल मिलेगा” (Keep performing your duties; the results will follow). This subtle shift in understanding encourages us to embrace the process of action, appreciate the present moment, and trust that the fruits of our endeavors will naturally unfold.
Worrying about results can be a source of stress, hindering our ability to perform our duties with a clear and focused mind. The constant preoccupation with the future can rob us of the joy and fulfillment derived from the present moment. The revised perspective reminds us that if we commit ourselves wholeheartedly to the tasks at hand, the results will naturally align with the effort invested.
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